मुख्यमंत्रीजी, कहीं ‘आपदाग्रस्‍त’ न ‌हो जाए सड़कें

मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) का काम लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) को देने के मसले पर केंद्र पर दबाव बनाने में आखिरकार कामयाब रहे।

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दिल्ली में बुधवार को केंद्रीय परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री आस्कर फर्नांडिस से हुई मुलाकात में रुद्रप्रयाग-गौरीकुंड मार्ग पीडब्ल्यूडी को सौंपने पर सहमति बन गई। केंद्रीय मंत्री से बातचीत में मुख्यमंत्री ने बीआरओ की सुस्त रफ्तार की शिकायत की।

बैठक में यह भी तय हुआ कि अन्य सड़कों पर भी एक सप्ताह में फैसला कर लिया जाएगा। केंद्रीय मंत्री ने दोनों संगठनों में समन्वय बनाकर कार्य करने की नसीहत दी।

सभी सड़कों की नही हो रही है बात

मुख्यमंत्री के मुताबिक राज्य सरकार ने बीआरओ के अधीन कुछ महत्वपूर्ण सड़कों पर तेजी से कार्य करने के लिये सीमित प्रस्ताव दिये हैं।

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राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के अधीन नारसन-नेपाली फार्म (66 किमी), नेपाली फार्म-देहरादून (39 किमी), बाजपुर-सितारगंज (80 किमी) तथा रुद्रपुर-काठगोदाम (45 किमी) का प्रस्ताव दिया गया है।

एनएच-72 पर राज्य सरकार के देहरादून शहर के लिये प्रस्तावित चार फ्लाईओवर को जल्द एनओसी देने का आग्रह भी किया गया।

अपना काम पूरा नहीं, दूसरे का लेने को तैयार

समय से सड़कें नहीं बनाने के मामले में बदनाम लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) को सरकार सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) का चुनौतीपूर्ण काम भी थमाने जा रही है।

इस रास्ते का सबके बड़ा सवाल यह है कि जिस विभाग में संसाधनों, इंजीनियरों व विशेषज्ञों की कमी खतरनाक स्तर तक है वो इस नई चुनौती से कैसे निपट सकेगा।

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विभाग में प्रमुख अभियंता के पद पर अभी भी कामचलाऊ व्यवस्था है। जो इंजीनियर हैं भी उनमें से कुछ पीएमजीएसवाई (प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क निर्माण योजना) में प्रतिनियुक्ति पर काम कर रहे हैं।

पिछले वर्ष टिहरी लोकसभा उप-चुनाव से पहले सरकार ने पूरा जोर लगाया, लेकिन देहरादून शहर और आसपास की सड़कें समय से नहीं बनी। विभाग में सबसे शीर्ष पद प्रमुख अभियंता का है। लेकिन उस पर स्तर-1 के एक मुख्य अभियंता को कार्यवाहक के तौर पर नियुक्त किया गया है।

लेवल-1 में स्वीकृत दो मुख्य अभिंयताओं के पदों पर प्रमोशन हुए लेकिन एक इंजीनियर राजेंद्र प्रसाद प्रमोशन के दिन ही रिटायर हो गए और एके बिष्ट मई में सेवानिवृत्त हो जाएंगे। इस स्तर पर सबसे वरिष्ठ के जिम्मे प्रमुख अभियंता का काम है। एक पोस्ट खाली है। मुख्य अभियंता स्तर-2 का भी एक पद रिक्त है।

पीडब्ल्यूडी का ये है हाल
: सीई, एसई, ईएक्सईएन से लेकर वास्तुविद तक 15 पद रिक्त
: एई से लेकर सहायक वास्तुविद तक 188 पद रिक्त
: वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी, पीएस, सहायक लेखाधिकारी के 26 पद रिक्त
: एडिशनल एई से लेकर जेई तक 53 पद रिक्त
: प्रशासनिक अधिकारी से नीचे तक 148 पद खाली

राज्य में सड़कों की स्थिति (आंकड़े किमी में)
प्रदेश में सड़कों की कुल लंबाई – 30,000
पीडब्लूडी के अधीन – 26,000
बॉर्डर रोड आर्गेनाइजेशन – 1500
पीएमजीएसवाई – 2500

सड़क मरम्मत के लिए रोड़ी-पत्थर तक तो उठाने दे नहीं रही सरकार
राज्य में सड़कों की बदहाल स्थिति दूर न होने के लिए सरकार बीआरओ की सुस्त गति को जिम्मेदार ठहराते हुए दुर्गम क्षेत्रों में सड़क निर्माण की माहिर बीआरओ पर सवाल खड़ा कर रही है तो दूसरी तरफ संगठन को सड़क निर्माण के लिए जरूरी रोड़ी-पत्थर के उठान की अनुमति नहीं दे रही है।

स्टोन क्रशर स्थापित करने के संगठन के प्रस्ताव आश्वासन से आगे नहीं बढ़ पाए हैं। आपदा से तबाह सड़कों के निर्माण के लिए महज 45 करोड़ बीआरओ को जारी किए गए। अब जब आपदा पुनर्निर्माण पैकेज का 30 फीसदी हिस्सा सड़कों पर खर्च होने जा रहा है तो अचानक संसाधनविहीन लोक निर्माण विभाग पर भरोसा जागने पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं।

महज 5 फीसदी काम ही बीआरओ के अधीन
– 648 किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्ग
– 346 किलोमीटर जनरल स्टाफ रोड
– 37 किलोमीटर गृह मंत्रालय की सड़कें
– 18 किलोमीटर के अन्य डिपॉजिट वर्क

केंद्र भी दुर्दशा का जिम्मेदार
तीन वर्षों में प्रोजेक्ट शिवालिक के लिए केंद्र ने बीआरओ के 20 फीसदी प्रस्ताव ही स्वीकृत किये।
– 2010 में 65 प्रस्तावों से 45 करोड़ के 17 प्रस्ताव स्वीकृत।
– 2011 में 38 प्रस्तावों से 96 करोड़ के 8 प्रस्ताव स्वीकृत।
– 2012 में 21 प्रस्तावों से 22 करोड़ का एक प्रस्ताव स्वीकृत।

ऐसी परिस्थिति में बीआरओ ही कारगर
राज्य आपदा प्रबंधन सलाहकार समिति के अध्यक्ष लेफ्टिनेंट जनरल (रि) एमसी बधानी ने प्रदेश सरकार को सड़क पुनर्निर्माण में बीआरओ की हिस्सेदारी की रिपोर्ट दी है।

बीआरओ प्रमुख रह चुके जनरल बधानी ने बताया कि बीआरओ के सड़क निर्माण की कई दशकों की महारत होने के साथ पर्याप्त लेबर से लेकर उपकरण और अन्य संसाधन है। पुनर्निर्माण में उसकी विशेषज्ञता ही कारगर रहेगी। पीडब्ल्यूडी जब तक साधनसंपन्न नहीं होता तब तक प्रमुख सड़कें बीआरओ के अधीन ही रखी जानी चाहिए।

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